कश्मीर: एक अनुभव, एक एहसास है।
कश्मीर की अविश्वसनीय खूबसूरती |
प्यारे दोस्तों, मेरे लेखों को जो प्यार और प्रोत्साहन आपने प्रदान किया है उसके लिए मैं कोटि-कोटि धन्यवाद देता हूं। मैंने अपने पसंद के कुछ विशेष विषयों पर लेख लिखे, और साथ ही अपने व्यक्तिगत अनुभवों को भी आपके साथ साझा किया, इस आशा के साथ कि आपको यह पसंद आए।
आज मैं अपने एक और खूबसूरत अनुभव को साझा करने की मंशा के साथ आपके समक्ष प्रस्तुत हुआ हूं। उस खूबसूरत अनुभव का नाम है कश्मीर।
आपके ज़ेहन में ये ख्याल शायद आ रहा होगा कि अपने पिछले लेखों की भांति मैं ये लेख अंग्रेज़ी में न लिखकर हिंदी में क्यों लिख रहा हूं। मैंने पहले अंग्रेज़ी में ही लिखने की कोशिश की थी, पर अपनी भावनाओं को भली भांति से व्यक्त करना अपनी मातृभाषा में ही संभव था।
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कश्मीर: धरती का जन्नत
दुनिया में दो प्रकार के लोग होते हैं, एक वो जो कश्मीर जा चुके हैं, और दूसरे वो जो कश्मीर जाना चाहते हैं, हालांकि जो कश्मीर जा चुके हैं वो भी पुनः कश्मीर जाना चाहते हैं। कश्मीर भारत के मस्तक का वो अनमोल मुकुट है जो नायब रत्नों से जड़ित है। इसकी खूबसूरती का वर्णन करने का हुनर मेरे जैसे एक आम इंसान की क्षमता से परे है। शायद इसीलिए कश्मीर की सुंदरता के बखान करने का दुरह कार्य कवियों और सूफियों द्वारा ही संभव हो सका।
तकरीबन 700 साल पूर्व मशहूर सूफी शायर अमीर खुसरो ने कश्मीर की खूबसूरती को बयां करते हुए कहा था -
गर फ़िरदौस बर रूये ज़मी अस्त,
हमी अस्तो हमी अस्तो हमी अस्त।
(धरती पर अगर कहीं स्वर्ग है, तो यहीं है, यहीं है, यही है)
जब जहांगीर ने कश्मीर की वादियों के दीदार किए तो वो भी इस धरती के स्वर्ग की तारीफ़ में इस नज़्म को दोहराने से खुद को रोक न सका।
आधुनिक इतिहासकारों के अनुसार ईसा मसीह ने भी अपने पुनर्जीवन के उपरांत येरूशलम छोड़कर धर्म प्रचार की यात्रा करते हुए अंततः कश्मीर में ही आकर अपने जीवन का एक बड़ा भाग बिताया था।
(For detailed information, read "Jesus Lived in India: His Unknown Life Before and After the Crucifixion" by Holger Kersten, link here)
मुझे कश्मीर जाने का सुअवसर कई बार प्राप्त हुआ है, जिनका वर्णन मैं आपके समक्ष कर रहा हूँ।
पहला अवसर
कश्मीर भ्रमण का प्रथम सुअवसर मुझे अप्रैल सन् 2005 में प्राप्त हुआ, जब मैं अपने बड़े भाई और बड़ी बहन के साथ माता वैष्णों देवी की यात्रा पर गया। तब हमें मिलाकर तकरीबन 32 लोग इस यात्रा पर गए थे।
माता वैष्णों देवी के अलौकिक दर्शनोपरांत इस बात पर विचार चल रहा था कि यहां से अब कहां जाया जाए, क्योंकि पूर्वनिर्धारित योजनानुसार हम मनाली जाने वाले थे। लेकिन जब वहां के लिए बस की बुकिंग कराने गए तो वहां देखा कि श्रीनगर जाने के लिए बस भी वहां मिल सकती थी। थोड़ा विचार-विमर्श के पश्चात बहुमत से यह तय किया गया कि हम सब कश्मीर की यात्रा पर जायेंगे। मैं तो बहुत उत्साहित था।
अगले दिन दोपहर बारह बजे के आसपास हम बस से कश्मीर को निकल पड़े। 11 घंटे की दुर्गम लेकिन खूबसूरत यात्रा के बाद हम श्रीनगर पहुंचे। बीच में पड़ने वाली जगह रामबन पर हमने वहां की मशहूर राजमा चावल का लुत्फ उठाया। थके हारे हम अपने होटल पहुंचे।
पहला दिन: श्रीनगर
अगले दिन हमने श्रीनगर के मशहूर मुगल बागों को देखा। खूबसूरत बागों से भरा श्रीनगर सच में स्वर्ग सा लग रहा था। हमने शालीमार बाग़, निशात बाग़, चश्मा शाही और ट्यूलिप गार्डन देखा।
इसके अलावा हमने डल झील में शिकारा की नौका विहार भी किया, जो एक अविस्मरणीय अनुभव था। पूरा दिन घूमकर हमने शाम को अपने होटल में लौटकर आराम किया। मेरा तो रोम रोम रोमांचित हो रहा था श्रीनगर की अप्रतिम सुंदरता देखकर और मैं अगले दिन की प्रतीक्षा करने लगा। माहौल थोड़ा खतरनाक एवं खौफ़नाक सा था, पर उत्साह में सब कुछ अच्छा लग रहा था।
दूसरा दिन: गुलमर्ग
अगले दिन हमें गुलमर्ग जाना था। वहां बर्फ से लकदक ऊंचे पहाड़ पर दुनिया के सबसे ऊंचे गंडोला (उड़न खटोला)🚡 से चढ़ने में अद्भुत आनंद मिला। बर्फ़ का भरपूर मजा उठाने के उपरांत हम रात में श्रीनगर लौट आए।
तीसरा दिन: पहलगाम
अगले दिन हमें पहलगाम जाना था। वहां का रास्ता बहुत ही सुंदर था। वहां की वादियों को देखकर मेरी आंखें खुली रह गई। हालांकि वहां ऊपर पहाड़ पर जाने की व्यवस्था थी पर बहुत बड़े समूह का हिस्सा होने के कारण हम ऊपर बेताब घाटी वगैरह नही जा सके।
पर कश्मीर की जो यात्रा हमने की थी वो मंत्रमुग्ध करने वाली थी। इतने बड़े समूह में यात्रा करना काफी रोमांचक था। हालांकि उस यात्रा में एक दुर्भाग्यशाली घटना घटी जिसके कारण वो यात्रा सदैव हमें याद रहेगी। उस समय हमारे पास डिजिटल कैमरा नहीं बल्कि साधारण कैमरा था। हम सब ने बहुत सारी तस्वीरें ली, पर जब बनारस लौटकर आए और उन तस्वीरों को छायांकित कराने को दिया तो पता चला कि उसका रोल खराब हो चुका है, और एक भी तस्वीर बनकर नहीं मिल सकी। मन तो बहुत खराब हुआ, क्योंकि उन तस्वीरों में कश्मीर का स्वर्ग क़ैद करके लाए थे हम, पर अब लगता है, बिना तस्वीरों के हम उन पलों को और शिद्दत से याद करते हैं।
दूसरा अवसर
इसके बाद सन् 2010 के अप्रैल महीने में दूसरी बार हमें कश्मीर जाने का मौका मिला। अपनी शादी के कुछ दिनों बाद, मैं और मेरी पत्नी स्वाति माता वैष्णोदेवी के दर्शन को गए। दर्शनोपरांत फिर हम श्रीनगर के लिए निकल पड़े। मैं तो पहले कश्मीर जा चुका था, पर स्वाति का ये पहला मौका था।
रामबन में एक बार फिर हमने राजमा चावल खाया और बगल में चेनाब नदी पे बने बगलिहार बांध के सामने बेहद खूबसूरत तस्वीरें ली। रास्ते भर हिमालय की वादियों की खूबसूरती को देखकर वो अचंभित होती रही। मैंने उनसे कहा कि अभी यही तुम्हें सुंदर लग रहा है, जब कश्मीर की खूबसूरती के दीदार होंगे तो ये सब साधारण दिखने लगेगा।
बगलिहार बाँध के सामने मेरा चित्र |
पहला दिन: श्रीनगर
पहले दिन हम दोनों मुग़ल गार्डन गए, जिसमें निशात बाग़, शालीमार बाग़, चश्मा शाही (जहां मैं पहले जा चुका था) शामिल थे।
शालीमार बाग़ के झरने अत्यंत मोहित करने वाले थे, वहीं निशात बाग़ से डल झील का नज़ारा बहुत ही अविस्मरणीय दिख रहा था। वहीं हमने कुल्फी फलूदा का आनंद उठाया।
निशात बाग़ |
चश्मा शाही शीतल जल का एक प्राकृतिक स्त्रोत है, जिसको देखकर हुमारा मन प्रसन्न हो गया। उसके इर्द-गिर्द फैले बाग़ में समय व्यतीत करके आत्मा पुनर्जीवित हो गयी। शहर की भाग-दौड़ से परे यह एक अलग दुनिया थी, जिसमें एक सुकून का एहसास था।
चश्मा शाही |
फ़िर हम एक नई जगह गए जिसे परी महल कहते हैं। नाम के अनुरूप वो सच में परियों का महल ही लग रहा था। एक ज़माने में मुग़लवंशी दारा शिकोह वहां रहा करता था।
उस पहाड़ों से घिरे सुंदर बाग़ वाले महल को देखकर हम मंत्रमुग्ध हो उठे। इस धरती पे ऐसे खूबसूरत नज़ारे भी होते हैं ये यकीन करना मुश्किल हो रहा था। पहाड़ पर फैले बादल बस एक हाथ की दूरी पर दिख रहे थे।वातावरण स्वर्ग सा अनुभव करा रहा था मानो हम आकाश में स्थित किसी परीलोक में आ गये हों।
मंत्रमुग्ध कर देने वाला ट्यूलिप गार्डन |
इसके बाद हम ट्यूलिप गार्डन भी गए जो रंगीन फूलों से भरा हुआ था। रंगीन खूबसूरत फूलों मे घिरी स्वाति किसी अप्सरा सी नज़र आ रही थी।
फ़िर हमने डल झील में शिकारा से नौका विहार का अद्भुत अनुभव का आनंद उठाया।
दूसरा दिन: गुलमर्ग
गुलमर्ग के पहाड़ों का मनमोहक दृश्य |
अगले दिन सुबह तड़के ही हम दोनों गुलमर्ग के लिए निकल पड़े। रास्ते में दूर से ही नज़र आ रही पीर पंजाल पर्वत शृंखला के पहाड़ों को देखकर हम दोनों बहुत उत्साहित हो रहे थे।
उस खूबसूरत नज़ारे को देखकर हम स्वयं को खुशनसीब महसूस कर रहे थे।वहाँ के स्थानीय बाज़ार में हमने कहवा भी पीया। काफी समय वहां व्यतीत करने के पश्चात हम श्रीनगर लौट आए।
तीसरा दिन: पहलगाम
अगली सुबह हम पहलगाम के लिए निकले। पिछली बार पहलगाम को नीचे से हो देखकर लौट गया था मैं, इसलिए इस बार सोच रखा था कि ऊपर बेताब घाटी को ज़रूर देखेंगे। वहां जाकर घोड़ा करके हम दोनों बेताब घाटी गए।
वहां पहुंचने पर जो अद्भुत नज़ारा दिखा वो यकीन से परे था। ऊंचे पहाड़ों से घिरे अंतहीन घास के मैदान धरती पर जन्नत का अनुभव करा रहे थे। प्रकृति का ऐसा सुंदर रूप शायद ही कहीं देख जा सकता है।
इस प्रकार कश्मीर से मेरी दूसरी मुलाक़ात का समापन हुआ।
तीसरा अवसर
तीसरी बार कश्मीर जाने का सौभाग्य मुझे अक्टूबर सन् 2018 में प्राप्त हुआ। तब भी मैं, स्वाति और हमारी बेटी जाह्नवी माता वैष्णोदेवी के दर्शन को गए थे। माता के अद्भुत दर्शन के पश्चात हम फ्लाइट से श्रीनगर पहुंचे।
पहला दिन: श्रीनगर
पहले दिन हम श्रीनगर के स्थानीय दर्शनीय स्थलों के भ्रमण को निकले।
सबसे पहले हम बोटेनिकल गार्डन गए, जहां हम पहले नहीं गए थे। मैं अचंभित था कि पूर्व में दो बार आने के बावजूद भी मैं ऐसी खूबसूरत स्थान पर क्यों नहीं आया।
वह बाग़ बहुत खूबसूरत और विशाल था। जाह्नवी को वहाँ बहुत मज़ा आया।
अपने परिवार के संग वो अनमोल सुकून के पल आज भी मुझे याद आते हैं।प्रकृति की गोद में बसा वो मनमोहक बाग़ हमें मानो नवजीवन प्रदान कर रहा था। स्वाति को पतझड़ के कारण वहाँ के नारंगी पत्तों से भरे पेड़ अत्यंत मनोहारी लग रहे थे।
शालीमार बाग़ |
वहाँ से हम एक बार फिर शालीमार बाग़ और निशात बाग़ गये। वहाँ भी जाह्नवी और हमने खूब मस्ती की और तस्वीरें ली।
फ़िर हमने श्रीनगर की मशहूर डल झील में शिकारा से नौका विहार किया। तीसरी बार आने के बावजूद भी कश्मीर की खूबसूरती का अनुभव पहली बार के समान ही रोमांचित करने वाला था। कश्मीर की खूबसूरती अनछुई है जो उसे अद्वितीय बनाती है।
कश्मीर के पारंपरिक परिधान में जाह्नवी |
दूसरा दिन: गुलमर्ग
अगले दिन मैं तीसरी बार गुलमर्ग गया, पर इस बार गुलमर्ग का नज़ारा काफ़ी अलग था। अक्टूबर में बर्फ़ बहुत कम थी, पर सबसे ऊपर अफरवात पर जाकर बर्फ़ मिली और बर्फीली हवाएं भी मिली।
ठंड से शरीर अकड़ने लगा पर वो शुद्ध बर्फ़ीली हवा बहुत ही आनंददायक थी। वो दिन गुलमर्ग में बिताकर शाम को हम श्रीनगर लौट आए।
तीसरा दिन: सोनमर्ग
अगले दिन हमने सोनमर्ग जाने का तय किया। सोनमर्ग का रास्ता बहुत ही खूबसूरत था।
एक जगह हमें छिछले पानी की एक छोटी सी झील दिखी जहां कोई भी नहीं था। इतनी सुंदर जगह पर किसी का न होना बहुत ही विचित्र लग रहा था। हम वहां थोड़ी देर रुके और प्रकृति के सानिध्य में खुद को पाकर गदगद होते रहे। यादगार के लिए तस्वीरें लेकर हम सोनमर्ग की ओर बढ़ चले।
सोनमर्ग पहुंचकर हमने घोड़े किए और उनपे बैठकर हम वहां के मुख्य आकर्षण थाजावास ग्लेशियर (हिमनद) गए।
वहां मैं पैदल ही काफी दूर को निकल गया, और सामने सफ़ेद बर्फ़ से ढके ग्लेशियर के नज़दीक पहुंच गया।
फिर मैंने देखा कि सामने से बर्फ की एक आंधी हमारी ओर बढ़ रही थी। मैं फौरन अपने परिवार की तरफ़ लौटा, और घोड़े पे सवार होकर हम लौटने लगे। जल्द ही वो बर्फ़ की आंधी हम तक पहुंच गई, और जाह्नवी ने पहली बार हिमपात होते देखा। कश्मीर के विहंगम दृश्यों की कड़ी में एक और यादगार अध्याय जुड़ गया। सोनमर्ग निश्चित तौर पर एक अत्यंत ही सुंदर स्थान है, और हम सब वहां जाकर बहुत प्रसन्न हुए।
चौथा दिन: दूधपथरी
अगले दिन हमने सोचा कि आज कहीं जाने के बजाय होटल में ही आराम किया जाए। मैंने अपने ड्राइवर को जब ये बताया, तो उन्होंने कहा कि जब यहां आए हैं और एक दिन घूमने का और मौका है तो होटल में बैठकर क्या फायदा, मैं आपको एक नई जगह ले चलता हूं जहां बहुत कम लोग गए हैं। थोड़ा सोच-विचारकर हम निकल पड़े। बहुत ही विचित्र रास्तों और गलियों से गुजरते हुए हम चले जा रहे थे। मैं थोड़ा सशंकित हो उठा कि हम आखिर कहां जा रहे हैं, क्योंकि न तो कोई हसीन वादियां नज़र आ रही थीं और न ही कोई ऊंचे पहाड़।
बहुत देर यात्रा के उपरांत हम उस जगह पहुंचे जिसे दूधपथरी नाम से जाना जाता है। वहां घास के अंतहीन मैदान थे और बर्फीली नदी बह रही थी। वहां पहुंचते ही बर्फ़बारी होने लगी, जिससे मौसम और भी खुशनुमा हो उठा। बर्फीली नदी ऊंचे से झरना बनकर पत्थरों पर गिर रही थी जिसकी वजह से पानी दूध सा सफेद हो रहा था, जिसके कारण उस जगह का नाम दूधपथरी पड़ा। खुले मैदानों में जाह्नवी खुद दौड़ी और मस्ती की। कुल मिलाकर ड्राइवर की सलाह मानकर दूधपथरी जाने का निर्णय सफल रहा।
वहां से श्रीनगर लौटकर मन प्रसन्न और संतुष्ट था कि ये यात्रा सफल रही। अगले दिन मन में कश्मीर की एक और खूबसूरत याद लेकर हम लौट गए।
हवाई जहाज़ की खिड़की से नज़र आ रहे हिमालय की सफ़ेद पहाड़ियों को देखकर मन में पुनः ये निश्चय हुआ कि कश्मीर को यह हमारा अलविदा नहीं बल्कि फिर लौटकर आने का एक प्रण है।
कश्मीर: एक संक्षिप्त विवरण
कश्मीर की अपनी तीन यात्राओं के दौरान मैंने वहां के कई आकर्षणों को देखा जो की इस प्रकार हैं:
- बोटेनिकल गार्ड
- शालीमार बाग़
- निशात बाग़
- परी महल
- चश्माशाही
- ट्यूलिप गार्डन
- डल झील
- शंकराचार्य
- गुलमर्ग
- सोनमर्ग
- पहलगाम
- दूधपथरी
- निगीन झील
- लाल चौक
- सेब के बगीचे
- श्रीनगर हवाई अड्डा (बहुत खूबसूरत)
कश्मीर की खूबसूरती में खोकर हर बार यह एहसास होता है कि कितने खुशकिस्मत हैं हम जो हमारे देश में ऐसा खूबसूरत स्थान है। जो लोग स्विट्जरलैंड की खूबसूरती की तारीफ़ के कसीदे पढ़ते नहीं थकते, अगर वो एक बार कश्मीर के अनुपम दृश्य देख लें तो उनको एहसास हो जायेगा कि इस धरती पे अगर स्वर्ग है तो यहीं है।
कश्मीर घूमने के बाद जब भी कहीं और जाने की सोचता हूं तो बरबस ही मन पूछने लगता है कि अगर कहीं जाना ही है तो कश्मीर क्यों नहीं जाया जाए। अभी भी मन चाहता है कि उस जन्नत को और क़रीब से देख लूं। अभी भी बहुत से खूबसूरत नज़ारे हैं जो इन आंखों ने नहीं देखे। एक बार वुलर झील को नजदीक से देखना चाहता हूं। अभी लेह लद्दाख की ऊंचाइयों को छूना चाहता हूं।
कश्मीर के बारे में जब भी ख्याल आता है तो लगता है कि किसी शायर की ग़ज़ल ने एक मूर्त रूप ले लिया हो। जैसे धरती पे चलते चलते कोई मुसाफिर ने अचानक स्वर्ग को देख लिया हो। कश्मीर के बारे में इतना सब बयां करने के बाद भी यकीनन मैं ये कह सकता हूं कि "कोई अंदाज-ए-बयां इतना मुकम्मल न हो पाएगा जो कश्मीर के हुस्न को कैद कर सके"। धरती के इस नायाब नगीने को देखकर जहांगीर के जैसे अमीर खुसरो की वो नज़्म दोहराने का दिल करता है:
गर फ़िरदौस बर रूये ज़मी अस्त,
हमी अस्तो हमी अस्तो हमी अस्त।
कश्मीर से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य
कश्मीर का नाम सप्तर्षि महर्षि कश्यप के रुप मे जाना जाता है। और कश्मीर के पहले राजा भी महर्षि कश्यप ही थे। उन्होंने अपने सपनों का कश्मीर बनाया था। कश्मीर जम्मू - कश्मीर का उत्तरी भौगोलिक क्षेत्र है। कश्मीर एक मुस्लिम-बहुल क्षेत्र है। 1846 में, पहले एंग्लो-सिख युद्ध में सिख की हार के बाद, और अमृतसर की सन्धि के तहत ब्रिटिश से क्षेत्र की खरीद पर, जम्मू के राजा, गुलाब सिंह, कश्मीर के नए शासक बने। उनके वंशजों का शासन, ब्रिटिश क्राउन की सर्वोपरि (अधिराजस्व) के तहत हुआ जो 1947 में भारत के विभाजन तक चला। ब्रिटिश भारतीय साम्राज्य की पूर्व रियासत अब एक विवादित क्षेत्र बन गया, जिसे अब तीन देशों द्वारा प्रशासित किया जाता है: भारत, पाकिस्तान और चीन।
इतिहास
बुर्ज़होम पुरातात्विक स्थल (श्रीनगर के उत्तरपश्चिम में 16 किलोमीटर (9.9 मील) स्थित) में पुरातात्विक उत्खनन ने 3,000 ईसा पूर्व और 1,000 ईसा पूर्व के बीच सांस्कृतिक महत्त्व के चार चरणों का खुलासा किया है। अवधि I और II नवपाषाण युग का प्रतिनिधित्व करते हैं; अवधि ईएलआई मेगालिथिक युग (बड़े पैमाने पर पत्थर के मेन्शर और पहिया लाल मिट्टी के बर्तनों में बदल गया); और अवधि IV प्रारंभिक ऐतिहासिक अवधि (उत्तर-महापाषाण काल) से संबंधित है। प्राचीनकाल में कश्मीर हिन्दू और बौद्ध संस्कृतियों का पालना रहा है। माना जाता है कि यहाँ पर भगवान शिव की पत्नी देवी सती रहा करती थीं और उस समय ये वादी पूरी पानी से ढकी हुई थी। यहाँ एक राक्षस नाग भी रहता था, जिसे वैदिक ऋषि कश्यप और देवी सती ने मिलकर हरा दिया और ज़्यादातर पानी वितस्ता (झेलम) नदी के रास्ते बहा दिया। इस तरह इस जगह का नाम सतीसर से कश्मीर पड़ा। इससे अधिक तर्कसंगत प्रसंग यह है कि इसका वास्तविक नाम कश्यपमर (अथवा कछुओं की झील) था। इसी से कश्मीर नाम निकला।
कश्मीर का अच्छा-ख़ासा इतिहास कल्हण के ग्रन्थ राजतरंगिणी से (और बाद के अन्य लेखकों से) मिलता है। प्राचीन काल में यहाँ हिन्दू आर्य राजाओं का राज था।
मौर्य सम्राट अशोक और कुषाण सम्राट कनिष्क के समय कश्मीर बौद्ध धर्म और संस्कृति का मुख्य केन्द्र बन गया। पूर्व-मध्ययुग में यहाँ के चक्रवर्ती सम्राट ललितादित्य ने एक विशाल साम्राज्य क़ायम कर लिया था। कश्मीर संस्कृत विद्या का विख्यात केन्द्र रहा।
कश्मीर शैवदर्शन भी यहीं पैदा हुआ और पनपा। यहाँ के महान मनीषीयों में पतञ्जलि, दृढबल, वसुगुप्त, आनन्दवर्धन, अभिनवगुप्त, कल्हण, क्षेमराज आदि हैं। यह धारणा है कि विष्णुधर्मोत्तर पुराण एवं योग वासिष्ठ यहीं लिखे गये।
वर्तमान स्थिति और राजनीतिक विभाजन
भारत के पास जम्मू और कश्मीर की पूर्व रियासत के लगभग आधे क्षेत्र पर नियन्त्रण है, जिसमें जम्मू और कश्मीर और लद्दाख शामिल हैं, जबकि पाकिस्तान एक तिहाई क्षेत्र को नियन्त्रित करता है, जो दो वास्तविक प्रान्तों, आज़ाद कश्मीर और गिलगित-बल्तिस्तान में विभाजित है।पहले ही राज्य, जम्मू और कश्मीर और लद्दाख के कुछ हिस्सों को भारत द्वारा 5 अगस्त 2019 से केन्द्र शासित प्रदेशों के रूप में प्रशासित किया जाता है, राज्य की सीमित स्वायत्तता और द्विभाजन के निरसन के बाद।
कश्मीर की पूर्व रियासत का पूर्वी क्षेत्र भी एक सीमा विवाद में शामिल है, जो 19वीं शताब्दी के अन्त में शुरू हुआ और 21वीं सदी में जारी रहा। हालाँकि कश्मीर की उत्तरी सीमाओं पर ग्रेट ब्रिटेन, अफगानिस्तान और रूस के बीच कुछ सीमा समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए थे, चीन ने कभी भी इन समझौतों को स्वीकार नहीं किया और 1949 की कम्युनिस्ट क्रांति के बाद चीन की आधिकारिक स्थिति नहीं बदली, जिसने पीपल्स रिपब्लिक ऑफ़ चाइना की स्थापना की। 1950 के दशक के मध्य तक चीनी सेना लद्दाख के उत्तर-पूर्वी हिस्से में प्रवेश कर चुकी थी।
यह क्षेत्र तीन देशों के बीच एक क्षेत्रीय विवाद में विभाजित है: पाकिस्तान उत्तर-पश्चिमी भाग (उत्तरी क्षेत्र और कश्मीर) को नियन्त्रित करता है, भारत मध्य और दक्षिणी भाग (जम्मू और कश्मीर) और लद्दाख को नियन्त्रित करता है, और पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ़ चाइना पूर्वोत्तर भाग को नियंत्रित करता है। अक्साई चिन एण्ड द ट्रांस काराकोरम ट्रैक्ट)। भारत सियाचिन ग्लेशियर क्षेत्र के अधिकांश हिस्से को नियंत्रित करता है, जिसमें साल्टोरो रिज पास भी शामिल है, जबकि पाकिस्तान सॉल्टोरो रिज के दक्षिण-पश्चिम में निचले क्षेत्र को नियन्त्रित करता है। भारत विवादित क्षेत्र के 101,338 कि॰मी2 (39,127 वर्ग मील) को नियन्त्रित करता है, पाकिस्तान 85,846 कि॰मी2 (33,145 वर्ग मील) को नियन्त्रित करता है, और पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ़ चाइना शेष 37,555 कि॰मी॰ (14,500 वर्ग मील) को नियंत्रित करता है।
जम्मू और आज़ाद कश्मीर पीर पंजाल रेंज के बाहर स्थित हैं, और क्रमशः भारतीय और पाकिस्तानी नियन्त्रण में हैं। ये आबादी वाले क्षेत्र हैं। गिलगित-बाल्टिस्तान, जिसे पहले उत्तरी क्षेत्र के रूप में जाना जाता था, चरम उत्तर में प्रदेशों का एक समूह है, जो काराकोरम, पश्चिमी हिमालय, पामीर और हिन्दू कुश पर्वतमाला से घिरा है। गिलगित शहर में अपने प्रशासनिक केन्द्र के साथ, उत्तरी क्षेत्र 72,971 वर्ग किलोमीटर (7.8545×1011 वर्ग फुट) के क्षेत्र को कवर करते हैं और 1 मिलियन (10 लाख) की अनुमानित आबादी रखते हैं।
लद्दाख उत्तर में कुनलुन पर्वत शृंखला और दक्षिण में मुख्य महान हिमालय के बीच है। क्षेत्र के राजधानी शहर लेह और कारगिल हैं। यह भारतीय प्रशासन के अधीन है और 2019 तक जम्मू और कश्मीर राज्य का हिस्सा था। यह क्षेत्र में सबसे अधिक आबादी वाले क्षेत्रों में से एक है और मुख्य रूप सेभारोपीय और तिब्बती मूल के लोगों द्वारा बसा हुआ है। अक्साई चिन नमक का एक विशाल उच्च ऊँचाई वाला रेगिस्तान है जो 5,000 मीटर (16,000 फीट) तक ऊँचाई तक पहुँचता है। भौगोलिक रूप से तिब्बती पठार का हिस्सा अक्साई चिन को सोडा मैदान के रूप में जाना जाता है। यह क्षेत्र लगभग निर्जन है, और इसकी कोई स्थायी बस्ती नहीं है।
यद्यपि ये क्षेत्र अपने-अपने दावेदारों द्वारा प्रशासित हैं, लेकिन न तो भारत और न ही पाकिस्तान ने औपचारिक रूप से दूसरे द्वारा दावा किए गए क्षेत्रों के उपयोग को मान्यता दी है। भारत उन क्षेत्रों पर दावा करता है, जिसमें 1963 में ट्रांस काराकोरम ट्रैक्ट में पाकिस्तान द्वारा चीन को "सीडेड" क्षेत्र शामिल किया गया था, जो उसके क्षेत्र का एक हिस्सा है, जबकि पाकिस्तान अक्साई चिन और ट्रांस-काराकोरम ट्रैक्ट को छोड़कर पूरे क्षेत्र का दावा करता है। दोनों देशों ने इस क्षेत्र पर कई घोषित युद्ध लड़े हैं। १९४७ का भारत-पाक युद्ध ने आज की उबड़-खाबड़ सीमाओं की स्थापना की, जिसमें पाकिस्तान ने कश्मीर का एक तिहाई हिस्सा रखा, और भारत ने एक-आध, संयुक्त राष्ट्र द्वारा स्थापित नियन्त्रण रेखा के साथ। १९६५ का भारत-पाक युद्ध के परिणामस्वरूप गतिरोध और संयुक्त राष्ट्र के बीच युद्ध विराम हुआ।
1. जम्मू कश्मीर का वास्तविक नाम कश्यपमर कछुए की झील, इसी के नाम से कश्मीर बना।
2. हिंदुओं के प्रमुख तीर्थ स्थान माता वैष्णोदेवी और अमरनाथ गुफा जम्मू कश्मीर में ही स्थित है।
3. आपको बता दें कि यदि जम्मू कश्मीर की लड़की भारतीय से शादी करती है तो उसकी जम्मू कश्मीर की नागरिकता को खत्म किया जाता है और यदि पाकिस्तान के लड़के से शादी करती है तो पाकिस्तान की नागरिकता भी प्राप्त हो जाती हैं।
4. जम्मू कश्मीर का लेह जिला राज्य का सबसे बड़ा और गुजरात के कच्छ के बाद भारत का दूसरा सबसे बड़ा जिला है।
5. जम्मू कश्मीर के लोगों का मुख्य पेय पदार्थ कहवा है। यहां के लोग बारी शराब का सेवन करते हैं।
6. भारत में स्थाई विलय के लिए जम्मू कश्मीर के महाराजा ने विलय पत्र पर दस्तखत किए थे और गवर्नर जनरल माउंटबेटन ने 27 अगस्त को भारत विलय पत्र पर अपनी मंजूरी दी थी।
7. धारा 370 के तहत जम्मू कश्मीर में रहने वाले लोगों को दोहरी नागरिकता मिली है जिसमे जम्मू-कश्मीर और दूसरे भारतीय के लोग शामिल है।
8. भारत की सबसे लंबी सड़क सुरंग जम्मू कश्मीर में 11km लंबी है जिसे चीनानी और नर्सरी सुरंग के नाम से भी जाना जाता है।
9. जम्मू कश्मीर तीन समूह में बटा हुआ है जम्मू में हिंदू और घाटी में मुस्लिम तथा लद्दाख की उत्तरी भाग में बौद्ध आबादी रहती है।
10. धारा 370 के तहत जम्मू-कश्मीर में राज्य सरकार की अनुमति के बिना भारत सरकार का कोई भी कानून लागू नहीं हो सकता। अब ये धारा समाप्त कर दी गई है।
11. जम्मू कश्मीर में केसर तथा अखरोट की खेती की जाती है जो काफी प्रसिद्ध है।
12. जम्मू कश्मीर की राजधानी श्रीनगर है इसका क्षेत्रफल 167 किलोमीटर है।
13. जम्मू कश्मीर उत्तर में चीन और अफगानिस्तान, तथा दक्षिण में हिमाचल और पंजाब से घिरा हुआ है।
14. जम्मू कश्मीर का 2,22,236 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल है जिसकी मुख्य भाषा उर्दू, लद्दाखी, डोगरी, कश्मीरी पहाड़िया आदि है।
15. पश्मीना शॉल का उत्पादन सबसे ज्यादा जम्मू कश्मीर में ही होता है।
16. K2 विश्व की दूसरी सबसे ऊंची चोटी है जो P.O.K. में स्थित है।
कैसे पहुंचें
सड़क मार्ग - श्रीनगर सड़क के जरिए पूरे देश से जुड़ा है। श्रीनगर आप अपनी कार से भी जा सकते हैं और बस के जरिए भी पहुंचा जा सकता है। श्रीनगर तक दिल्ली, पंजाब और हरियाणा के कई शहरों से सीधी बस सेवा है। इसके अलावा जम्मू के लगभग हर बड़े शहर से भी सीधी बस सेवा श्रीनगर के लिए है। लेह और कटरा से भी श्रीनगर तक बस चलती है। श्रीनगर दिल्ली से 814 किलोमीटर, चंडीगढ़ से 566 किलोमीटर, जम्मू से 266 किलोमीटर और लेह से 418 किलोमीटर दूर है। सड़क के रास्ते अगर आप श्रीनगर जा रहे हैं तो जम्मू होकर ही जाना होगा। श्रीनगर जाने से पहले रोड के बारे में अच्छी तरह पता कर लें और मौसम देखकर ही श्रीनगर के लिए निकले क्योंकि सर्दियों के समय बर्फबारी होने से कई बार श्रीनगर हाइवे बंद कर दिया जाता है जिससे श्रीनगर बाकी देश से कट जाता है। बर्फ हटने के बाद ही सड़क मार्ग को खोला जाता है।
सड़क मार्ग के फायदे- सड़क मार्ग से जाने में समय ज्यादा लगता है लेकिन रास्ते में मिलने वाली प्राकृतिक खूबसूरती सारी थकान मिटा देती है। ऐसी प्राकृतिक खूबसूरती का लुत्फ आप हवाई मार्ग से नहीं उठा सकेंगे।
रेलमार्ग - श्रीनगर तक कोई भी सीधी रेल लाइन नहीं है। श्रीनगर से सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन उधमपुर या जम्मू तवी रेलवे स्टेशन है। जम्मू तवी और उधमपुर तक कई सीधी रेल जाती हैं। जम्मू तवी तो देश के लगभग हर बड़े शहर से जुड़ा है। यहां तक पहुंचने में आपको कोई परेशानी नहीं होगी। जम्मू तवी रेलवे स्टेशन पर उतरकर आप श्रीनगर तक बस या टैक्सी से जा सकते हैं या जम्मू एयरपोर्ट से फ्लाइट पकड़कर भी जा सकते हैं। जम्मू तवी तक दिल्ली, मुंबई, चेन्नई और बेंगलुरु से सीधी रेल सेवा उपलब्ध है।
रेल से जाने के फायदे- रेल से आप जम्मू या उधमपुर तक ही पहुंच सकते हैं। रेल में ज्यादा थकावट का अहसास नहीं होता और उधमपुर और जम्मू के बीच में आपको रेलवे द्वारा बनाए इंजीनियरिंग के कई नायाब नमूने भी देखने को मिलेंगे। उधमपुर से श्रीनगर केवल 200 किलोमीटर रह जाता है।
वायुमार्ग- श्रीनगर पहुंचने का यह थोड़ा महंगा साधन है लेकिन सबसे बेस्ट तरीका भी यही है। श्रीनगर तक भारत के लगभग हर बड़े शहर से सीधी उड़ान उपलब्ध है। हवाई जहाज के जरिए दिल्ली से श्रीनगर पहुंचने में करीब 1.25-1.45 घंटे लगते हैं। इसके अलावा मुंबई से श्रीनगर पहुंचने में जहाज को 2.30-3 घंटे लगते हैं और बेंगलुरु से पहुंचने में भी तकरीबन इतना ही समय लगता है। चंडीगढ़ और देश के दूसरे शहरों से भी श्रीनगर के लिए डायरेक्ट फ्लाइट उपलब्ध है।
हवाई जहाज से जाने के फायदे- हवाई जहाज से जाने में आपका समय बचता है और रास्ते में कोई परेशानी भी नहीं होती है।
जरूरी टिप्स- अगर आप सर्दियों में हवाई जहाज से श्रीनगर जाने की योजना बना रहे हैं तो मौसम की जानकारी जरूर ले लें। क्योंकि कई बार बर्फबारी के कारण श्रीनगर एयरपोर्ट में फ्लाइट देर से उड़ान भरती हैं या कई बार फ्लाइट कैंसिल भी हो जाती है।
श्रीनगर का मानचित्र:
Very nice and in formative post. Keep writing
ReplyDeleteVery nice
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